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हास्य व्यंग

नई दिल्ली, 14 फरवरी 2024

अनूप मणि त्रिपाठी

उस्ताद

मदारी के बार-बार कहने पर, जब बंदर ने कलाबाजी  नहीं मारी,तो मदारी परेशान हो गया। ऐसा तो पहले कभी न हुआ। मदारी ने सारे जतन कर लिए, मगर सब निष्फल सिद्ध हुए। बंदर टस से मस न हुआ। यह देखकर पब्लिक मारे हँसी के मरी जा रही थी। किंचित इसे वह खेल का हिस्सा समझ रही थी। 
अपनी परेशानी छुपाते हुए मदारी ने भीड़ पर नजर घुमाई। अचानक उसकी नजर एक जगह जाकर रुक गई।
मदारी ने झट हाथ जोड़े लिए और रूआंसा होकर बोला,'नेता जी यहां खड़े होकर हमारे पेट पर लात न मारिये!'
नेता को मदारी की बात समझ न आई। पूछ बैठे,'क्यों भाई! मैं तो तुम्हारा बंदर का खेला देख रहा हूं,मेरे देखने से तुम्हारे पेट पर कैसे लात पड़ रही!'
'साहब आप समझ नहीं रहे! आपको देखकर बंदर नरवसिया गया है!'
'काहे!'
'अरे साहब! अब आपके सामने क्या खाकर ये कलाबाजी मरेगा!'
यह सुनते ही पब्लिक जोर से हँसी। नेता जी खिसियाई हंसी के साथ वहां से रुखसत हो गए।

उनके जाते ही कमाल हो गया। बंदर ने झट से कलाबाजी  खाई ।

 

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